राजकुमार सिद्धार्थ का बचपन :
कपिलवस्तु के शासक राजा शुद्धोधन और देवदह की राजकुमारी महामाया के बेटे सिद्धार्थ का जन्म कपिलवस्तु के पास लुंबिनी में ईसा से 563 वर्ष पूर्व में हुआ था। सिद्धार्थ के जन्म के सातवें दिन ही उनकी माता महामाया का देहांत हो गया था। उनकी माता के देहांत के बाद उनका पालन पोषण सिद्धार्थ की मौसी गौतमी ने किया था। सिद्धार्थ बचपन से ही एकांत प्रिय और दयावान प्रवृत्ति के थे और उन की इस प्रवृत्ति के कारण कपिलवस्तु में सब लोग चिंतित रहते थे।
राजकुमार सिद्धार्थ को लेकर की गई भविष्यवाणी :
सिद्धार्थ के जन्म के समय ही एक ज्योतिषी ने कहा था कि यह बालक आगे चलकर या तो एक पराक्रमी सम्राट बनेगा या फिर एक महान संत, ज्योतिष की भविष्यवाणी को सुनकर राजा शुद्धोधन चिंता में पड़ गए। सिद्धार्थ की जैसी प्रवृत्ति थी, राजा को यह अंदेशा हो गया था कि यह बालक आगे चलकर एक महान संत बन सकता है. इससे उन्होंने निर्णय लिया कि व राजकुमार सिद्धार्थ को दुख और चिंता से दूर ही रखेंगे। इसके लिए उन्होंने राजा सिद्धार्थ को कभी भी महल से अकेले बाहर नहीं जाने दिया उनका पूरा बचपन राज महल के अंदर ही बीता।
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जीवन परिवर्तन की शुरुआत :
जैसे-जैसे राजकुमार सिद्धार्थ बड़े हुए और युवा अवस्था में आए तो 1 दिन बाहर की दुनिया देखने के लिए अपने पिता से जिद कर बैठे, राजा शुद्धोधन ने पहले तो काफी मना किया लेकिन बाद में जब उनकी जिद के आगे उनकी एक न चली तो उन्होंने अंत में राजा सिद्धार्थ के साथ कुछ लोगों को साथ भेजा। राजकुमार सिद्धार्थ जब घूमने के लिए बाहर निकले तो उन्हें सड़क पर सबसे पहले एक बूढ़ा आदमी दिखाई दिया और थोड़ी दूर जाने पर उनकी आंखों के सामने एक रोगी आ गया तीसरी बार राजा सिद्धार्थ को एक अर्थी दिख गई और थोड़ी दूर चलने पर उन्हें एक सन्यासी दिखाई पड़ा।
इन 4 दृश्यों ने राजा सिद्धार्थ को काफी व्याकुल कर दिया। जब राजकुमार सिद्धार्थ महल वापस पहुंचे तो सोचने लग गए कि जीवन आखिर है क्या? राजकुमार सिद्धार्थ की व्याकुलता को देखकर राजा शुद्धोधन और भी चिंतित हो गए, उनका बेटा सन्यासी ना बन जाए इस चिंता में उन्होंने उसका विवाह महल 16 वर्ष की आयु में यशोधरा नाम की युवती से करा दिया। विवाह के बाद भी राजा सिद्धार्थ खुश नहीं थे वही चार दृश्य उनकी नजरों के सामने बार-बार आ जा रहे थे, वे शांति बिल्कुल भी महसूस नहीं कर पा रहे थे और बार-बार व्याकुल हो जा रहे थे।
एक दिन उन्होंने यह सब कुछ छोड़ कर कहीं दूर जाने का फैसला लिया। संसार को दुखों और मरण से मुक्ति दिलाने के मार्ग की तलाश में राजा सिद्धार्थ आत्मज्ञान की खोज में जंगल में रहने लगे।
वर्षों की कठोर साधना के बाद एक दिन राजा सिद्धार्थ को आत्मज्ञान की अनुभूति हुई और इस आत्मज्ञान की प्राप्ति के बाद राजकुमार सिद्धार्थ गौतम बुद्ध बन गए, जिस दिन उन्हें यह आत्मज्ञान प्राप्त हुआ वह दिन वैशाख पूर्णिमा का दिन था।
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आत्मज्ञान की प्राप्ति के बाद महात्मा बुद्ध ने जो उपदेश दिए वह देश आज धर्म-चक्र-प्रवर्तन के नाम से कहलाते हैं। गौतम बुध के सिद्धांतों में शामिल है- किसी की हत्या ना करना, चोरी ना करना, झूठ ना बोलना, दूसरों की निंदा ना करना, दूसरों के दोष ना निकालना ,गलत भाषा का प्रयोग ना करना, किसी से घृणा ना करना और अज्ञानता से बचकर स्वयं को ज्ञान की खोज में लगाए रखना।